Friday, October 11, 2013

भगवान् की प्राप्ति...

एक मल्लाह था।

मन में बड़ी अशांति, बहुत दुःखी था।

उसके मन में विचार आया कि अब भगवान् की तरफ चलना चाहिए, शान्ति प्राप्ति करनी चाहिए। तीर्थयात्रा जाए और भगवान् के दर्शन प्राप्त करे।

उसकी पत्नी ने कहा कि तीर्थयात्रा जाने से शान्ति नहीं मिलेगी। शान्ति भीतर है। जब तक हम अपने अंतरंग नहीं जायेंगे तब तक शान्ति नहीं मिलेगी।

मल्लाह नहीं माना, कहने लगा कि मैं तो तीर्थयात्रा के लिए जाऊँगा और वहाँ से शान्ति ले करके आऊँगा।

वह तीर्थयात्रा की तैयारियाँ करने लगा।

उसकी पत्नी भी साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। उसने एक रूमाल में चार बैंगन बाँधकर रख दिए और जहाँ- जहाँ पतिदेव ने तीर्थयात्रा की, वहाँ- वहाँ वह स्वयं भी नहायी और पानी में बैंगनों को भी स्नान कराया। जहाँ- जहाँ दर्शन के लिए पतिदेव गये, वहाँ स्वयं भी दर्शन किया और उन चार बैंगनों को भी दर्शन कराया।

यात्रा करने के बाद जब घर वापिस आये तब पत्नी ने सारे तीर्थों की दर्शन कर चुके, सब नदियों में स्नान कर चुके बैंगनों की उसने सब्जी बनाई।

मल्लाह की थाली में परोसा तो उसे बड़ी दुर्गन्ध आयी।

कहने लगा, "अरे यह क्या है? बदबू के मारे मेरी नाक सड़ी जा रही है।"

पत्नी ने कहा कि ये वह बैंगन हैं, जो चारों धाम की यात्रा करके आये हैं। ये वह बैगन हैं, जो भगवान् के सारे तीर्थ के दर्शन करके आये हैं। इनमें तो सुगंध होनी चाहिए थी, स्वाद होना चाहिए था। परन्तु जब ये बैंगन सुगंध, खुशबू और स्वाद न प्राप्त कर सके, तो फिर तीर्थयात्रा और कर्मकाण्ड आपको क्या शान्ति दे पायेंगे?

मल्लाह के हृदय कपाट खुल गये और उसने अपने भीतर भगवान् को तलाश करना शुरू कर दिया।

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