Wednesday, September 19, 2012

विद्या लक्ष्मी

एक नौजवान हार्वर्ड युनिवेर्सिटी की मार्केटिंग डिग्री लेकर हिंदुस्तान
लौटा और उसने एक बड़ा सा स्टोर खोला…

कम दाम - ज्यादा सामान…

परन्तु उसका स्टोर चला नहीं...

उसके स्टोर के सामने एक छोटी किराने की दूकान थी जो ऐसे चलती थी जैसे
लाला सामान मुफ्त में बाँट रहा हो…

6 महीने बाद तंग आ कर नौजवान ने अपना स्टोर बेचने के लिए बाहर बोर्ड लगा दिया…

सामने की दूकान का लाला आया, और नगद पैसे दे कर उसकी जगह खरीद ली…

नौजवान हैरान हुआ और उसने लाला से उसके व्यापार के बारे में पुछा…

लाला बोला, "भईया, बेचते तो हम भी वो ही सामान है जो तुम बेचते हो,
परन्तु हम कम मुनाफे पर काम करते हैं… सीधी बात है, सिर्फ 1% मुनाफे पर
काम करो, माल ज्यादा बिकेगा और तभी काम चलेगा…"

नौजवान हैरान हुआ, "सिर्फ 1%?"

लाला ने जवाब दिया, "हाँ, जैसे की कोई चीज़ 1 रुपये की आई तो मैं उस को 2
रूपये में बेच देता हूँ, यानी की सिर्फ 1% मुनाफा…"

नौजवान को लाला के गणित पर तरस आया और बोला, "लाला जी, अगर आप 1 रूपये की
चीज़ 2 रूपये में बेचते हो तो यह 1% नहीं, 100% मुनाफा हुआ…"

लाला बोला, "हिसाब तो मुझे आता नहीं भईया, अपनी अपनी किस्मत की बात है …
तुम्हारे पास विद्या है, मेरे पास लक्ष्मी है…"

यह कह के लाला ने स्टोर को ताला लगाया और अपनी दूकान की तरफ लौट गया जहाँ
सामान खरीदने के लिए व्याकुल भीड़ उसका इंतज़ार कर रही थी …

6 महीने और बीते…

हार्वर्ड से लौटा हुआ वह नौजवान रेस कोर्स में घोड़ो पर दांव पे दांव
लगाये जा रहा था और अपने सारे पैसे हारे जा रहा था… सुबह से शाम होने को
आई परन्तु उसके लगाये हुए एक भी घोड़े के हिस्से में जीत नहीं आई…

हताश हो कर वह लौटने लगा की तभी उसने देखा की किराने की दूकान वाला लाला
रेस कोर्स में आया और आते ही 21 नंबर के घोड़े पर पैसा लगाया…

रेस चालू हुई और 21 नंबर का घोडा जीत गया…

नौजवान हैरान परेशान...

लाला के पास गया और बोला, लाला जी मुझे पहचाना, 6 महीने पहले आपने मेरा
स्टोर खरीदा था… एक बात पूछनी थी… क्या आपको पहले से ही मालुम था की आज
21 नंबर का घोडा जीतेगा और इसी जानकारी के चलते आपने अंदर आते ही उस घोड़े
पे दांव खेला…

लाला बोला, "नहीं भईया, मैं यहाँ से जा रहा था की मैंने सोचा चलो, आज 7वे
महीने का 4था रविवार है, और 7x4=21, बस यह ही सोच कर मैंने 21 नंबर पर
दांव लगा दिया.. …

नौजवान को लाला के गणित पर तरस आया और बोला, "लाला जी, आपका हिसाब गलत
है, 7 को अगर 4 से गुणा करो तो नतीजा 21 नहीं 28 होता है…"

लाला बोला, "हिसाब तो मुझे आता नहीं भईया, अपनी अपनी किस्मत की बात है …
तुम्हारे पास विद्या है, मेरे पास लक्ष्मी है …"

Thursday, September 06, 2012

खिचड़ी...

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी... कहानी याद है, लेकिन यह भूल गया की कहाँ पढ़ी थी... शायद नंदन या पराग में प्रकाशित हुई थी...

रामू गाँव से शहर जाने लगा तो उसकी माँ बोली, "अगर कभी पेट ख़राब हो जाए तो खिचड़ी खा लेना"... 

यह सोच की कहीं नाम भूल न जाये, रामू "खिचड़ी... खिचड़ी..." जपने लगा...

रास्ते में पत्थर से ठोकर लगी तो "खिचड़ी" की जगह उसके मुहं से "खा चिड़ि" निकलना शुरू हो गया... 

"खा चिड़ि" बोलते हुए एक खेत से निकला तो वहां के किसानो ने उसकी जम के पिटाई करी... बोले की चिड़ि कहीं फसल न खा जाए, इस लिए हम सारे यहाँ चिड़ि को उड़ा रहे है की और तू उन्हें बुला के कह रहा है की "खा चिड़ि" ... अब से तू सिर्फ बोलेगा "उड़ चिड़ि"...

मार खा के रामू अब "उड़ चिड़ि" जपने लगा... तभी एक बहिलये ने उसको पकड़ लिया और करी उसकी खूब धुनाई... बोला की मैं यहाँ पक्षियों को फांसने के लिए जाल बिछा के छुपा हुआ हूँ और तू गा रहा है "उड़ चिड़ि"... अब से तू सिर्फ बोलेगा "आते जाओ फसते जाओ"... 

रामू ने "आते जाओ फसते जाओ" जपना शुरू किया... तभी वहां से निकल रही एक डाकुओं की टोली ने उसे पकड़ लिया और उस की खूब पिटाई करी... पिटाई करने के बाद जब डाकू जाने लगे तो उनके सरदार ने रामू को ख़बरदार किया, "आइन्दा कभी "आते जाओ फसते जाओ" बोला तो मार-मार के उसकी खिचड़ी बना देंगे... 

रामू यह सुन के ख़ुशी से चिलाने लगा, "खिचड़ी... खिचड़ी... यह ही तो कहा था माँ ने... "