Sunday, September 22, 2013

कच्चा घड़ा

एक व्यक्ति सुकरात के पास गया और कहने लगा कि मुझे ऐसा उपाय बताइये, जिससे मैं भगवान् का साक्षात्कार कर सकूँ। भगवान् तक पहुँच सकूँ। 

सुकरात ने कहा- ‘अच्छा तुम कल आना, फिर मैं तुम्हें उसका मार्गदर्शन करूँगा।’ 

दूसरे दिन वह व्यक्ति सुकरात के पास पहुँचा। 

सुकरात ने मिट्टी का एक घड़ा मँगाकर रखा था। वह पकाया नहीं गया था, वरन् मिट्टी का बना हुआ कच्चा घड़ा था। 

सुकरात ने कहा- ‘जाओ, मेरे लिए एक घड़ा पानी लाओ। मैं पानी पी लूँ, उसके उपरांत मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूँगा।’

कच्चा घड़ा लेकर वह व्यक्ति कुएँ पर गया। रस्सी बाँधी और रस्सी बाँधकर के उसको कुएँ में डुबोया। खींचते- खींचते घड़े का बहुत सारा हिस्सा, कोना टूट- फूट गया। किसी तरीके से थोड़ा- बहुत पानी लेकर वह घड़ा ऊपर आया। घड़े को उसने सिर पर रखा, हाथ पर रखा। सुकरात के पास उसे लेकर जब तक वह पहुँचा, मिट्टी का वह घड़ा बिखर गया।

उसने सुकरात से कहा कि- जो घड़ा आपने मुझे पानी भरने के लिए दिया था वह रास्ते में ही बिखर गया।

सुकरात ने कहा- ‘ठीक यही फिलॉसफी भगवान् का प्यार प्राप्त करने और भगवान् का अनुग्रह प्राप्त करने की है। कच्चा घड़ा अपने भीतर पानी को धारण नहीं कर सका। उसके लिए जरूरत इस बात की पड़ती है कि घड़ा पक्का हो। अगर हमारे पास पक्का घड़ा है, तो पानी भर जायेगा, ठंडा रहेगा, बेतकल्लुफ खड़ा रहेगा और पानी हमको मिल जायेगा। अगर घड़ा कच्चा है, तो पानी बिखर जायेगा।’

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