Saturday, August 18, 2018

मत कहो हवा से वो खुद को आज़माएँ... बुझाना भूल, वो अब कुछ जला के दिखाए...

मानो कि लोगो के कहने में आ के हवा भी चने के झाड़ पर चढ़ जाए दूसरों की सुनकर लाली की ललकार तम में अपना मुँह वो लाल कर आये गर आवेश में हवा अपना वेग बदल दे एक चिंगारी से जंगल की क्षति कर दे हवा को बहने दो अपने रुख, अपनी गति जो बुझ गया, शायद थी उसकी वो नियति मत कहो हवा से वो खुद को आज़माएँ बुझाना भूल, वो अब कुछ जला के दिखाए... ____________________________ कदाचित यात्रा ही गंतव्य है... चलते रहो, बहते रहो...