The journey is the reward... Keep walking...
Sunday, July 26, 2015
ग़म में मुस्कुराता हूँ और मसर्रत में आह निकलती है
बिखरा इक शाम तो फिर ज़र्रों को इस तरह बेहिस मिलाया मैंने
अब ग़म में मुस्कुराता हूँ और मसर्रत में आह निकलती है
bikhra ek shaam toh phir zarron ko iss tarah behis milaya maine
ab gham mein muskurata hoon aur masarrat mein aah nikalti hai
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