मानो कि लोगो के कहने में आ के
हवा भी चने के झाड़ पर चढ़ जाए
दूसरों की सुनकर लाली की ललकार
तम में अपना मुँह वो लाल कर आये
गर आवेश में हवा अपना वेग बदल दे
एक चिंगारी से जंगल की क्षति कर दे
हवा को बहने दो अपने रुख, अपनी गति
जो बुझ गया, शायद थी उसकी वो नियति
मत कहो हवा से वो खुद को आज़माएँ
बुझाना भूल, वो अब कुछ जला के दिखाए...
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कदाचित यात्रा ही गंतव्य है... चलते रहो, बहते रहो...